हेल्पिंग हैंड्स - दिल से !! लेख #1
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी बधाई के पात्र हैं जो उन्हीने बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ अभियान चालू किया।
पर क्या होने चाहिए इस के सही मायने , इस पर कुछ बात करना चाहता हूँ।
असल में ये अभियान होना चाहिए बेटियाँ बचाओ बेटियाँ पढ़ाओ और सबसे जरूरी 'बेटियों की सुनो और उनको समझो भी'।
हाल ही में हेल्पिंग हैंड्स की बुद्ध विहार पाठशाला में बच्चों को पढ़ाते समय ये वाकया हुआ, 'पायल' नाम की एक बच्ची जो अपनी कॉपी नहीं लायी थी , मेरे सवाल पे चुप रह गयी।
"तुम कॉपी क्यों नहीं लायी ?" पायल चुप थी।
उसके साथ ही बैठी उसकी एक दोस्त, जो कि उससे एक साल बड़ी होगी बोली - "सर ये स्कूल नहीं जाती" |
क्यों नहीं जाती तुम स्कूल ? पायल फिर चुप थी।
"सर इसकी मम्मी नहीं है, पापा जाने नहीं देते स्कूल। बुआ मार पीट के अपने घर ले जाती है और घर के काम करवाती है।"
अब मैं चुप था और मेरे पास कुछ नहीं था कहने के लिए।
मैं सोच रहा था ऎसे नजाने कितने बच्चे और बच्चियाँ होंगे अलवर की इन बस्तियों में जिनके साथ ऐसा सलूक होता है। उसी क्षण मैंने सोचा था मैं कुछ लिखूंगा इस मुद्दे पर।
यह अकेला किस्सा नहीं है, एक किस्सा और हुआ मेरे साथ जब मैं हेल्पिंग हैंड्स की अखेपुरा पाठशाला में पढ़ा रहा था और एक बच्ची जो कि पढ़ रही थी, कुछ सोचते-2 वो परेशान सी हो गयी। उससे उसकी परेशानी की वजह पूछने पर, उसकी सहपाठी एकाएक ही बोल पड़ी - "सर इसके पापा इसकी मम्मी को मारते हैं"। साथ में पढ़ रहे सभी बच्चे, उस लड़की की शक्ल देख रहे थे और मैं उन सब की। इस बार भी मेरे पास कुछ नहीं था कहने को और मैंने सभी का इस विषय से ध्यान हटाया, यही सोच के की इस पर ध्यान देने की जरुरत बड़े लोगो को हैं , बच्चों को नहीं, इन्हें पढ़ने दो।
अचंभित हो जाता हूं कभी कभी ये सोच के कि , आज के दौर में ये क्या हो रहा है ? बच्चे बड़ो को सीखा रहे है जीवन का मतलब !!
कच्ची बस्तियों की इन घटनाओं को देख के लगा की , सिर्फ शिक्षा के आभाव में ही ये सब कुछ हो रहा है।
कुछ ही दिन में यह धारणा टूट गयी, जब समाज के तथाकथित पढ़े लिखे लोगो से सामना हुआ।
यहाँ पर भी पुरुष अपने आप को अपने घर की स्त्रियों से ऊपर रखता है, और इतिहास ये कहता है की उसके इस वर्चस्व को बढ़ाने में स्त्री ने ही कभी न कभी उसका साथ दिया।
पहले स्त्री पर जुल्म हुए, वो स्त्री मजबूर थी, परिवार की इज़्ज़त की खातिर आवाज़ नहीं उठाई , सहन किया सब कुछ, ना जाने कितनी कुर्बानिया दी, और एक समय बाद उसको आदत पड़ गयी। आगे चल कर उसी स्त्री ने परिवार की और स्त्रियोँ/ बेटीयों पे होने वाले अत्याचार में पुरुष का साथ दिया। उसकी विचारधारा भी यह हो गयी की ये एक सामान्य बात है, यह तो चलता है। इतना तो हक़ है पुरुषो का, उन्होंने हमारे लिए बहुत कुछ किया है।
क्यों भूल जाती है स्त्रियां की संसार की उत्पत्ति, संचालन उन से है?
एक तरफ जहाँ कच्ची बस्ती की पायल स्कूल नहीं जा सकती, वही एक अच्छे परिवार की लड़की स्कूल/कॉलेज/ऑफिस तो जाती है, पर क्या पहन के जायेगी, कब वापिस आएगी , किस्से दोस्ती करेगी, ये परिवार के वो तथाकथित मुखिया तय करते है और उनकी इस करनी पर मोहर लगाती हैं घर की वो स्त्रियां जिन्होंने खुद भी कभी न कभी ये जुल्म सहा है।
जिस समाज में घर की बेटियां अपने हिसाब से कपडे नहीं पहन सकती, अपने मित्र खुद नहीं तय कर सकती, वहां जीवन साथी का चयन कर लेना तो बहुत बड़ा गुनाह/पाप हो जाता है।
घर के लोग नजाने कितने तरह के ताने देते है, कसूर मंढ देते है। एकाएक ही नजाने कैसे उनको लगता है की बच्ची ने उनका विश्वास तोड़ दिया है। अपना जीवन साथी चुनने की स्वतंत्रता क्या लड़कियो को नहीं है ? क्या हम सही में आज़ाद है ? अपना जीवन साथी सवयं तय करने में कुल की शान से कुलनाशिनी कैसे हो जाती है यह लड़कियाँ ? तक़लीफ़ महसूस कर पाना तो दूर की बात है, इन सब के बीच उसकी बात को कभी भी सही तरीके से नहीं सुना जाता है।
रह जाती है तो बस काटने के लिए सजा , सुनने के लिए ताने, खाने के लिए मार और साथ देते है अपने आंसू जब तक आँखे सूख नहीं जाती।
इतना कुछ होने के बाद भी इन बेटियों का अपने परिवार के लिए प्यार औए चिंता खत्म नहीं होती। इन सब किस्सों में ऐसा कुछ नहीं जिसके बारे में हमने पहले कुछ न देखा, ना पढ़ा और ना सुना हो। हम सब जानते है, पर ऐसा कब तक चलेगा ? कब तक हमारे समाज में लड़कियों और स्त्रियों के साथ इस तरह का व्यवहार और अन्याय होता रहेगा ? कब तक हम चुप रहेंगे और सब सहेंगे ?कब तक लड़के की चाहत में, लडकिया कोख में ही मरती रहेंगी? जनम ले भी लिया तो कब तक परिवार के जुल्म सहेंगी ? कब तक तथाकथित समाज में अपनी इज़्ज़त के लिए माँ बाप अपने बेटियों और दामादों को मारते रहेंगे ?
कब सुनी जायेगी बेटियों की? कब समझा जायेगा उन्हें ?
मोदीजी आपके अभियान से बेटियाँ बच तो जाएँगी, पर उसके बाद क्या ? जीवन भर के इस संघर्ष के लिए कैसे तैयार होंगी ? हमारे समाज की मानसिकता बदले तो कुछ बात है अन्यथा अभियान तो चलते है और चलते रहेंगे।
आपका
उमेश खत्री