Friday 21 April 2017

तुमसे मुलाकात

आज तुमसे मुलाकात हुई,
इस बार तुम सुबह मेरे उठते ही चली आई,
पर तुम आई बड़े लंबे अरसे बाद,
तुम्हारा अचानक से ऐसे चले आना डरा ही देता है मुझे,
खैर, मिलने तो मैं भी आया तुमसे,
वहीं मेरी पसंदीदा जगह पर।

इस बार हमारे बीच कोई नहीं था,
सिर्फ थे तो मैं और तुम,
तुम पूरी तरह भावों से भरी हो,
तुम जब भी मिलती हो गहरा एहसास कराती हो,
हिला देती हो अंदर तक,
आँखे भी नम होने से रुक नहीं पाती,
तुमने मुझ मस्ती में झूमते,
हवा में अपने सपनों के महलों से जमीन पर ला दिया है।

पर तुम सत्य हो,
तुम ही प्रथम हो,
मैं ही तुम्हें हमेशा नकारता रहा हूँ,
तुम ही जीवन हो,
तुम्हारा बिना तो जीवन ऐसा है मानों बगियाँ में केवल एक ही तरह के पुष्प,
तुम ही रंग हो,
तुम ही रस हो,
तुम ऊर्जा स्त्रोत हो,
तुम विश्वास बढाती हो,
तुम ही सफलता का मार्ग बतलाती हो।
तुमसे दोस्ती हो तो जीवन की यह कठिन राह भी आसान है,

पर सुनो, तुम रोज न आना,
बस अपना अहसास बनाये रखना,
रोजाना तुम्हारी उपस्थिति का तेज मैं सह नहीं पाऊँगा,
तुम आते रहना, मिलते रहना,
मेरा हाल चाल पूछते रहना,
बस कभी मेरे सपनों और मेरे बीच अवरोध न बनना,
भले ताउम्र मेरे साथ चलना,
और अब तो तुमसे दोस्ती भी हो गई है।

'प्रिय चिंता' तुमसे फिर मिलेंगे।

- कुमार यश

Sunday 31 July 2016

कि आज छुट्टी का दिन है।

छः दिन के बाद आया है ये दिन
आज रविवार है
कि आज छुट्टी का दिन है।

मिली है मन को शांति
तन को आराम
किये है घर के छोटे छोटे काम
कि आज छुट्टी का दिन है।

सुना है संगीत
देखी है टीवी
माँ ने बनाई है आज घर ने सेवी
कि आज छुट्टी का दिन है।

मिलेंगे मित्रों से
करेंगें मन की बातें
फिर याद आई है बचपन की वो खुराफातें
कि आज छुट्टी का दिन है।

खाएंगे छुटपुट बाजार की खाना
मित्रों का लगा है घर आना-जाना
कि आज छुट्टी का दिन है।

Friday 15 July 2016

मेरी दिनचर्या

मुझे पता है यह जीवन अनमोल है
लेकिन मामला बडा ही घोलमोल है 
बैठे जो नांव में पार करने को दरिया 
पर ये रास्ता भी कैसा जिसका न कोई छोर है |

सुबह उठते ही मुझको, घेर लेते है ये फेसबुक, वाट्स एप्प और अख़बार
सेहत को अपनी कर दिया है दरकिनार 
फिर होती है मुझको ऑफिस आने की जल्दी
माँ कहती है बेटा तू फिक्र न कर, मैंने रोटी है पैक करदी |
मै लापरवाही का मारा, कभी भूलता कुछ - कभी भूलता कुछ 
वक्त पे है पहुँचना मगर मुझको सच-मुच |

आता हूँ ऑफिस तेज गाडी चलाकर - 2
पर मेरे उत्साह की गति मेरी गाडी से भी ज्यादा है 
सच कहूँ तो जिंदगी जीने में बड़ा मजा आता है |

ऑफिस है अपना सबसे अच्छा,
रहता है सबके मन में एक छोटा सा बच्चा |
करते है यहाँ सब मिल बैठ के मस्ती
पर हालत है सबकी जैसे अपनी सी खस्ती |
कभी मजाक, कभी सुस्त हो जाते हो
ऑफिस में रहना यारों तुम ही तो सिखाते हो |

हो जाती है शाम तो घर लौट आता हूँ मैं
कभी सीधे दोस्तों के कभी घर जाता हूँ मैं|
सोने से पहले मन करता है कुछ पढ़ लूँ
अपने अन्दर ज्ञान थोडा सा और भर लूँ

पर अपनी नींद के आगे हार जाता हूँ मैं
और वही सपनों की रंगीन दुनियाँ में खो जाता हूँ मैं ||

बस इतनी सी देखों अपनी कहानी है |
एक दिन यारों यह भी मिट जानी है |
कोई गलती मुझसे अगर हो गयी हो तो माफ़ करना |
फिर पता नहीं भाई हमें कब मिलना ||
फिर पता नहीं भाई हमें कब मिलना ||



Tuesday 5 July 2016

अभी कुछ लिखने का मन है, पता नहीं मै क्या लिखूँगा |

अभी कुछ लिखने का मन है,
पता नहीं मै क्या लिखूँगा...
मॉडर्न ज़माना है पैन नहीं, लैपटॉप उठाया है
बैठा हूँ लिखने
पता नहीं मै क्या लिखूँगा |

जो मन में आ रहा है,
बस लिखे जा रहा हूँ..
अपनी मन की कथा में लिखे जा रहा हूँ,
लेकिन आगे पता नहीं मै क्या लिखूँगा |

तेरी-मेरी कहानी लिखूँगा,
तन-मन की अपनी तन्हाई लिखूँगा,
तेरी निभाई बेवफाई लिखूँगा,
जरुर अपनी सच्चाई लिखूँगा..
पर पता नहीं मै क्या लिखूँगा...

खुद से खुद की लड़ाई लिखूँगा,
हुजूरों का मुझ पर अत्याचार लिखूँगा,
जीवन का अधुरा संघर्ष लिखूँगा,
मेरे सपनों की सच्चाई अब मै लिखूँगा..
पर पता नहीं मै क्या लिखूँगा |

वादा खिलाफी को मै लिखूँगा,
जुमले सुनाये वो मै लिखूँगा,
तेरे भाषणों की सच्चाई लिखूँगा,
मन के गुस्से को मै अब लिखूँगा..
पता नहीं मै क्या लिखूँगा |

लिखते-लिखाते कविता बन गयी है,
मेरे मन को भी तसल्ली मिल गयी है
पढना हो तुम को, तो तुम भी पढ़ लेना
पर पता नहीं मैने क्या लिखा है ||


ऐसे ही... रात के 10:30 बजे |
मेरे मन से |

आपका
यश अरोड़ा |



Saturday 9 January 2016

उन आँखों के मोती

हेल्पिंग हैंड्स - दिल से !!  लेख #1

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी बधाई के पात्र हैं जो उन्हीने बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ अभियान चालू किया।
पर क्या होने चाहिए इस के सही मायने , इस पर कुछ बात करना चाहता हूँ।

असल में ये अभियान होना चाहिए बेटियाँ बचाओ बेटियाँ पढ़ाओ और सबसे जरूरी 'बेटियों की सुनो और उनको समझो भी'।
हाल ही में हेल्पिंग हैंड्स की बुद्ध विहार पाठशाला में बच्चों को पढ़ाते समय ये वाकया हुआ, 'पायल' नाम की एक बच्ची जो अपनी कॉपी नहीं लायी थी , मेरे सवाल पे चुप रह गयी।

"तुम कॉपी क्यों नहीं लायी ?" पायल चुप थी।
उसके साथ ही बैठी उसकी एक दोस्त, जो कि उससे एक साल बड़ी होगी बोली - "सर ये स्कूल नहीं जाती" |
क्यों नहीं जाती तुम स्कूल ? पायल फिर चुप थी।
"सर इसकी मम्मी नहीं है, पापा जाने नहीं देते स्कूल। बुआ मार पीट के अपने घर ले जाती है और घर के काम करवाती है।"
अब मैं चुप था और मेरे पास कुछ नहीं था कहने के लिए।

मैं सोच रहा था ऎसे नजाने कितने बच्चे और  बच्चियाँ होंगे अलवर की इन बस्तियों में जिनके साथ ऐसा सलूक होता है। उसी क्षण मैंने सोचा था मैं कुछ लिखूंगा इस मुद्दे पर।

यह अकेला किस्सा नहीं है, एक किस्सा और हुआ मेरे साथ जब मैं हेल्पिंग हैंड्स की अखेपुरा पाठशाला में पढ़ा रहा था और एक बच्ची जो कि पढ़ रही थी, कुछ सोचते-2 वो परेशान सी हो गयी। उससे उसकी परेशानी की वजह पूछने पर, उसकी सहपाठी एकाएक ही बोल पड़ी  - "सर इसके पापा इसकी मम्मी को मारते हैं"। साथ में पढ़ रहे सभी बच्चे, उस लड़की की शक्ल देख रहे थे और मैं उन सब की। इस बार भी मेरे पास कुछ नहीं था कहने को और मैंने सभी का इस विषय से ध्यान हटाया, यही सोच के की इस पर ध्यान देने की जरुरत बड़े लोगो को हैं , बच्चों को नहीं, इन्हें पढ़ने दो।

अचंभित हो जाता हूं कभी कभी ये सोच के कि , आज के दौर में ये क्या हो रहा है ? बच्चे बड़ो को सीखा रहे है जीवन का मतलब !!

कच्ची बस्तियों की इन घटनाओं को देख के लगा की , सिर्फ शिक्षा के आभाव में ही ये सब कुछ हो रहा है।
कुछ ही दिन में यह धारणा  टूट गयी, जब समाज के तथाकथित पढ़े लिखे लोगो से सामना हुआ।

यहाँ पर भी पुरुष अपने आप को अपने घर की स्त्रियों से ऊपर रखता है, और इतिहास ये कहता है की उसके इस वर्चस्व को बढ़ाने में स्त्री ने ही कभी न कभी उसका साथ दिया।

 पहले स्त्री पर जुल्म हुए, वो स्त्री मजबूर थी, परिवार की इज़्ज़त की खातिर आवाज़ नहीं उठाई , सहन किया सब कुछ, ना जाने कितनी कुर्बानिया दी, और एक समय बाद उसको आदत पड़ गयी। आगे चल कर उसी स्त्री ने परिवार की और स्त्रियोँ/ बेटीयों पे होने वाले अत्याचार में पुरुष का साथ दिया। उसकी विचारधारा भी यह हो गयी की ये एक सामान्य बात है, यह तो चलता है। इतना तो हक़ है पुरुषो का, उन्होंने हमारे लिए बहुत कुछ किया है।
क्यों भूल जाती है स्त्रियां की संसार की उत्पत्ति, संचालन उन से है?

एक तरफ जहाँ कच्ची बस्ती की पायल स्कूल नहीं जा सकती, वही एक अच्छे परिवार की लड़की स्कूल/कॉलेज/ऑफिस तो जाती है, पर क्या पहन के जायेगी, कब वापिस आएगी , किस्से दोस्ती करेगी, ये परिवार के वो तथाकथित मुखिया तय करते है और उनकी इस करनी पर मोहर लगाती हैं घर की वो स्त्रियां जिन्होंने खुद भी कभी न कभी ये  जुल्म सहा है।

जिस समाज में घर की बेटियां अपने हिसाब से कपडे नहीं पहन सकती, अपने मित्र खुद नहीं तय कर सकती, वहां जीवन साथी का चयन कर लेना तो बहुत बड़ा गुनाह/पाप हो जाता है।
घर के लोग नजाने कितने तरह के ताने देते है, कसूर मंढ देते है। एकाएक ही नजाने कैसे उनको लगता है की बच्ची ने उनका विश्वास तोड़ दिया है। अपना जीवन साथी चुनने की स्वतंत्रता क्या लड़कियो को नहीं है ? क्या हम सही में आज़ाद है ? अपना जीवन साथी सवयं तय करने में कुल की शान से कुलनाशिनी कैसे हो जाती है यह लड़कियाँ ? तक़लीफ़ महसूस कर पाना तो दूर की बात है, इन सब के बीच उसकी बात को कभी भी सही तरीके से नहीं सुना जाता है।
रह जाती है तो बस काटने के लिए सजा , सुनने के लिए ताने, खाने के लिए मार और साथ देते है अपने आंसू जब तक आँखे सूख नहीं जाती।
इतना कुछ होने के बाद भी इन बेटियों का अपने परिवार के लिए प्यार औए चिंता खत्म नहीं होती। इन  सब किस्सों में ऐसा कुछ नहीं जिसके बारे में हमने पहले कुछ न देखा, ना पढ़ा और ना सुना हो। हम सब जानते है, पर ऐसा कब तक चलेगा ? कब तक हमारे समाज में लड़कियों और स्त्रियों के साथ इस तरह का व्यवहार और अन्याय होता रहेगा ? कब तक हम चुप रहेंगे और सब सहेंगे ?कब तक लड़के की चाहत में, लडकिया कोख में ही मरती रहेंगी? जनम ले भी लिया तो कब तक परिवार के जुल्म सहेंगी ? कब तक तथाकथित समाज में अपनी इज़्ज़त के लिए माँ बाप अपने बेटियों और दामादों को मारते रहेंगे ?

कब सुनी जायेगी बेटियों की? कब समझा जायेगा उन्हें ?
मोदीजी आपके अभियान से बेटियाँ बच तो जाएँगी, पर उसके बाद क्या ?  जीवन भर के इस संघर्ष के लिए कैसे तैयार होंगी ? हमारे समाज की मानसिकता बदले तो कुछ बात है अन्यथा अभियान तो चलते है और चलते रहेंगे।

आपका
उमेश खत्री

Friday 23 October 2015

देश की बेहतरी के लिए उठे हाथ तो बना हैल्पिंग हैंड्स अलवर : दीपक चंदवानी

www.helpinghandsalwar.org
देश के लिए कुछ करने की एक सोच जब किसी युवा के जेहन में उठी तो एक एक कर सैंकड़ों युवा जुटते चले गए और एक ऐसा समूह उठ खड़ा हुआ जिसने अलवर के इतिहास का सबसे लंबे समय तक लगातार चलने वाला आंदोलन चलाया | आज हैल्पिंग हैंड्स समूह को अलवर में स्वच्छता की दिशा आंदोलन करते एक वर्ष हो गया है | ये आंदोलन दूसरे आन्दोलनों की तरह प्रशासनिक संस्थाओं को कोसने या व्यवस्थाओं के नाम आरोप प्रत्यारोप तक ही सीमित नहीं है, बल्कि जो उत्साही युवा इस समूह से जुड़े उन्होंने जमीन पर उतर कर अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह भी किया है | किसी रोज़ आप अपने घर से निकलें तो कोई आश्चर्य नहीं कि आपको ये नवयुवा बड़ी संख्या में सड़कों पर झाडू लिए गंदगी से लड़ाई लड़ते, नालों में उतर कर सदियों से जमी जड़ता की कीचड़ को साफ़ कर देश के भविष्य को खोजने का प्रयास करते हुए दिखाई दें या किसी शाम गिटार और डफली लेकर जोशीली आवाज़ में आपको देश के भविष्य के लिए अपनी मानसिकता परिवर्तित करने के गीत गुनगुनाते सुनाई दें | जहाँ एक ओर जनता के प्रति उत्तरदायी लोग झाडू के साथ फोटो क्लिक करवा कर अपने दायित्व की इतिश्री मान लेते हैं तथा दूसरी ओर फैशनपरस्ती के समसामयिक माहौल में आज का दिग्भ्रमित युवा महँगे ब्रांडेड कपडे पहन हवा से बातें करती गाड़ियों पर अपनी ही दुनिया में मस्त रहने में यकीन करता है, वहीं हैल्पिंग हैंड्स से जुड़े स्कूल कॉलेज के सैकड़ों छात्र छात्राएँ इस आभासी दुनिया से बहुत ऊपर उठकर चेहरे पर मास्क और हाथों में ग्लव्ज पहने अपने नाज़ुक हाथों मगर आत्मविश्वास से परिपूर्ण मानसिकता से बिना किसी लाभ की आशा के देश के लिए कुछ करने के जज्बे को दिल में संजोये सड़कों पर निकलते हैं | हैल्पिंग हैंड्स से जुड़ने वाला युवा एक ऐसा काम कर रहा है जिसे समाज किसी एक विशेष समुदाय का काम मानता है, धरातल पर काम करने से समाज के बहुत से युवाओं की सोच में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है और जीवन के विविध अनुभवों से उनका हृदय और मस्तिष्क परिष्कृत हुआ है | सफाई को बहुत तुच्छ काम समझने के कारण ही आज देश में इतनी गंदगी फ़ैल गई है | सारी दुनिया के विकसित देशों के साथ तुलना की जाए तो हमें अपना देश कचरा पात्र से अधिक नहीं लगता | आज रह रह कर कवि मुक्तिबोध की  पंक्तियाँ दिलो दिमाग में कौंध जाती हैं ...."लिया बहुत बहुत ज्यादा, दिया बहुत बहुत कम......मर गया देश, अरे जीवित रह गए हम" | हैल्पिंग हैंड्स का हर सदस्य इस बात से बखूबी परिचित है कि हर नागरिक की अस्मिता का सीधा जुड़ाव उसके देश की अस्मिता से होता है | अपने देश की अस्मिता को बनाए रखने के लिए किए जा रहे युवाओं के निष्काम कर्म से प्रेरित होकर देश का नागरिक भी अब जागरूक होने लगा है | अनेक कॉलोनियों में से ये खबरे आने लगी हैं कि लोग अपने घरों से निकलकर अपने पास-पड़ोस को साफ़ करने की दिशा में काम करने लगे हैं | अनेक दुकानदारों ने डस्टबीन खरीदकर अपने दुकानों के सामने रख लिए हैं | एक ओर जहाँ प्रशासन करोड़ों रुपये के वार्षिक बजट के बाद भी शहर को साफ़ करने में अपनी अक्षमता प्रदर्शित करता है वहाँ ये युवा अपने घर से साफ़ सफाई का सामान लाते हैं और सड़कों, बाजारों, कॉलोनियों पर अपने दायित्व का निर्वाह करने के लिए निकलते हैं | आज एक वर्ष की यात्रा के दौरान इस समूह से 100 से अधिक शिक्षण संस्थाओं के सदस्यों तथा अलवर शहर के 10 हजार से अधिक नागरिकों ने स्वच्छता अभियान में भाग लेकर अपने जिम्मेदार नागरिक होने का सच्चा सबूत दिया है | हैल्पिंग हैंड्स अलवर की पहल से प्रेरित होकर अब शहर से बाहर भी बम्बोरा, तिजारा, बहादुरपुर, मुंडावर, मौजपुर और जयपुर में भी युवाओं ने अपने क्षेत्र की तस्वीर बदलने का निशचय किया है |

हैल्पिंग हैंड्स समूह के युवा स्वच्छता ही नहीं अपितु देश के भविष्य के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू “शिक्षा” पर भी काम कर रहे हैं | इस अभियान के अंतर्गत शहर के शिक्षित युवा शहर की कच्ची बस्तियों में जाकर जीवन की आधारभूत सुविधाओं से वंचित वर्ग के बच्चों के बीच हर शनिवार और रविवार ज्ञान की ज्योति जलाकर अज्ञान रुपी अन्धकार को दूर करने का प्रयास भी कर रहे हैं | अभी यह अभियान शहर के अखैपुरा कच्ची बस्ती में चल रहा है पर अब शहर के सैकड़ों युवक युवतियों और अनेक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थाओं के साथ आने से शहर की छोटी-बड़ी 40 कच्ची बस्तियों में इस आंदोलन को चलाने की राह आसान हो गई है |
युवाओं के हौंसले और उत्साह को देखते हुए कहा जा सकता है कि वह दिन दूर नहीं जब हिन्दुस्तान अपनी गौरवशाली परम्पराओं और संस्कृति की उदात्तता को पुनर्स्थापित करने में सफल होगा | प्रसिद्ध गज़लकार दुष्यंत कुमार ने संभवतः युवाओं के दिलों में छुपी दृढ़ता की इसी चिंगारी को पहचानते हुए कहा था ----

“एक चिंगारी कहीं से ढूंढ लाओ दोस्तों इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है”

लेखक
दीपक चंदवानी 

Monday 12 January 2015

एक शुरुवात, एक अनुभव | By Yash Arora

नया साल-नया संकल्प रैली के समापन के पश्चात टीम हेल्पिंग
हैंड्स दिल्ली के अस्मिता थिएटर ग्रुप के साथ |
अपनी इंजीनियरिंग की पढाई के 6 सेमेस्टर बीत जाने के बाद मैंने ब्रिटिश इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंग्लिश लैंग्वेज ज्वाइन किया | यहाँ पर हम दीपक शर्मा जी (जो कि हमारे इंग्लिश ट्रेनर थे) के सानिध्य में देश के विभिन्न समस्याओं पर बहस किया करते व उनके समाधान निकालने की कोशिस करते |

उन्ही दिनों की बात है जम्मू-कश्मीर में बाढ़ आ गयी और अलवर से कोई भी संस्था मदद नहीं पंहुचा रही थी जबकि पूरे देश के लोग कुछ न कुछ भेज रहे थे | दीपक सर के दिमाग में आया कि हम अपनी संस्था के नाम से कुछ धनराशि प्रधानमंत्री रहत कोष शिविर में पहुंचाते है और हमने कुछ Money Collection किया, थोड़ी ही देर में यह एक बड़ी धन राशि के रूप में परिवर्तित हो गया | तब मैंने और मेरे कुछ मित्रो ने सोचा कि क्यों नहीं हमें उन लोगो को मदद पहुँचाने के लिए एक मुहीम शुरू करे ? इसके पश्चात हम कुछ युवा साथी (नाम दिया Helping Hands Alwar) शहर के बहुत से विद्यालयों, कॉलेजों और संस्थाओं को प्रेरित करने के लिए निकल पड़े और इसका असर भी दिखने लगा तथा जन जागरूकता के लिए एक Music Concert नंगली सर्किल पर आयोजित किया |

उपरोक्त वर्णित कार्यक्रम के सफल आयोजन के बाद यह निश्चित किया गया कि अब हेल्पिंग हैंड्स विभिन्न रचनात्मक, सृजनात्मक जन-जागरूकता अभियान जारी रखेगा और युवाओं को लोकतंत्र में अप्रत्यक्ष रूप से अपनी योग्यताओं के माध्यम से देश निर्माण में भागीदारी रखने का मौका देगा |

सभी हेल्पिंग हैंड्स सदस्यों ने यह निश्चित किया कि वह 2 घंटे प्रति सप्ताह (रविवार) राष्ट्र निर्माण में श्रमदान करेगें। सभी 2 नवम्बर को अपनी झाडुओं के साथ भगतसिंह चौराहे पर पहुँच गए। 2 घंटे पेड़ो की छटाई, कूड़ा उठाने व भगतसिंह जी की प्रतिमा धोने के बाद भगतसिंह सर्किल चमक उठा। तब हमें यह महसूस हुआ कि इस तरह तो बहुत कुछ बदला जा सकता है और हमारा यह छोटा सा प्रयास एक Clean Alwar Initiative के रूप में बदल गया।

हमने यह सोच लिया था कि इस पहल को एक जन-आन्दोलन का रूप देना है इसलिए मैं और मेरी टीम सप्ताह के शुरुवाती 5 दिन कार्य करते शनिवार को सभी को Reminder करने कार्य शेष रहता और रविवार की सुबह कार्यक्षेत्र पर पहुँच जाते।

इस बार (अम्बेडकर सर्किल, 7 नवम्बर 2014) को पूर्व सभापति, कुछ पार्षद व अन्य गणमान्य लोग भी युवाओं द्वारा चलायी जा रही इस पहल में शामिल हुए | इस सप्ताह से नगर परिषद भी अपना सहयोग हमें लगातार देने लगी | बहुत साड़ी शैक्षणिक संस्थाओं के सहयोग से अब तक हम 11 रविवार विभिन्न स्थानों (भगतसिंह सर्किल, अम्बेडकर सर्किल, कम्पनी बाघ, विवेकानन्द चौक, शिवाजी पार्क, वार्ड 41, वार्ड 28, वार्ड 13, शिव काम्प्लेक्स व वार्ड 44) पर सफाई कर चुके है | इसके अलावा अपने 10वें सप्ताह पर "नया साल-नया संकल्प रैली" का आयोजन किया जिसमे दिल्ली के अस्मिता थिएटर ग्रुप ने शिल्पी मारवाह के नेतृत्व में Garbage व दस्तक दो नाटकों का मंचन किया | इन 11 हफ्तों में हमें सभी प्रकार के लोगों से मिले, कुछ ने हमें प्रोत्साहित किया और कुछ ने अप्रोत्साहित भी | पर प्रोत्साहित करने वालों की संख्या बहुत ज्यादा थी | अलवर एक छोटा शहर है, जहाँ लोगों में अपने समाज और देश के प्रति सदा से सहानभूति रही है, इसलिए जब हम लोगों के पास जाकर इस मूवमेंट के बारे में समझाने लगे तो उन्होंने हमारे द्वारा चलायी जा रही इस मुहीम को अपना आशीर्वाद दिया और साथ जुड़ गए |

किसी भी मुहीम को अकेला व्यक्ति नहीं चला सकता, इसके लिए बहुत सारे धन व समर्पित लोगों की आवश्यकता होती है, हम सब विद्यार्थी थे, पैसा हमारे पास नहीं था लेकिन हम समर्पित जरूर थे | शहर की कुछ संस्थाओं और लोगों ने हमारी समर्पित भावनाओं को पहचानते हुए हमें विभिन्न समयों पर आर्थिक व अपनी सेवाओ के माध्यम से मदद की | जिनमे स्टार कार्डस, आर.डी.एन.सी. मित्तल फाउंडेशन, होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ़ अलवर, प्रोजेक्ट एकता, बाल भर्ती शिक्षा समिति के नरेंद्र मोदी जी, अतुल्य अप्प क्रिएशन, साबिर म्यूजिकल क्लास्सेज, बाबा ठाकुरदास कलाकंद और अनेक शैक्षणिक संस्थाएँ व व्यक्तियों ने हमारा साथ दिया |

हमारी टीम के प्रमुख सदस्य अंकित अनिल भार्गव, दीपक मिश्रा, मनीष गुप्ता, संजय दीक्षित, सौरव शर्मा, राहुल चौधरी और दिनेश गुर्जर है | जिनमे से अंकित भार्गव हमारे थिंक टैंक और दीपक शर्मा ने एक प्रेरक का कार्य किया |

"जन-भागीदारी ही लोकतंत्र की आत्मा है" इसी उद्देश्य से आगे आने वाले सप्ताहों में हम अलवर में कार्यरत सभी राष्ट्र-निर्माण में समर्पित संस्थाओं व व्यक्तियों को एक भावना के साथ एक मंच पर लाने का कार्य करेंगे |
हमारी टीम ने यह निश्चित किया है कि इस वर्ष (2015) के सभी रविवारों को हम सफाई के प्रति समर्पित करेगें और देश-विदेशों में कार्यरत विषय विद्वानों (Experts) को अलवर में बुलवाकर अलवर की solid/liquid waste management system पर शोध करेंगे इसी के साथ टेक्नोलॉजी की मदद से इस व्यवस्था को सस्ता, सरल व उच्च-क्षमता वाला बनाने के सन्दर्भ में एक उच्च-स्तरीय कॉन्फ्रेंस सुनिश्चित है |

हमें विस्वास है कि आने वाले समय में अपने प्रयासों से हम लोगों को इतना संवेदनशील बनाएंगे कि वह सड़कों पर कूड़ा नहीं फेंकेंगे और सरकारी तंत्र जिम्मेदारी से अपना कार्य करेगी और साल 2015 'क्लीन अलवर ईयर' के रूप में याद किया जायेगा |

                                                                                                                         
                                                                                                                                - यश अरोड़ा